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Ashir Trivedi

kabir ke 66 prasiddh dohe

Ashir Trivedi

66 SONGS • 1 HOUR AND 10 MINUTES • JUN 13 2024

1
कबीर दोहा - दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय | जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ||
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2
कबीर दोहा - तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय । कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
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3
कबीर दोहा - गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥
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4
कबीर दोहा - साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये | मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ||
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5
कबीर दोहा - लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट | अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ||
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6
कबीर दोहा - जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान | मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ||
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7
कबीर दोहा - जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप | जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ||
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8
कबीर दोहा - धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
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9
कबीर दोहा - शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान | तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ||
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10
कबीर दोहा - माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
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11
कबीर दोहा - माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे | एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ||
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12
कबीर दोहा - रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ॥
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13
कबीर दोहा - काल करे सो आज कर, आज करे सो अब | पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ||
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14
कबीर दोहा - मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख | मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख ||
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15
कबीर दोहा - ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये | औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||
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16
कबीर दोहा - कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार | साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ||
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17
कबीर दोहा - जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए | यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ||
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18
कबीर दोहा - तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार | सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ||
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19
कबीर दोहा - कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय | भक्ति करे कोई सुरमा, जाती बरन कुल खोए ||
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20
कबीर दोहा - साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
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21
कबीर दोहा - ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग | तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ||
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22
कबीर दोहा - नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय | कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय ||
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23
कबीर दोहा - सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज | सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ||
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24
कबीर दोहा - आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर | इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ||
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25
कबीर दोहा - कागा का को धन हरे, कोयल का को देय | मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ||
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26
कबीर दोहा - कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर | जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ||
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27
कबीर दोहा - चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये | दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ||
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28
कबीर दोहा - जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान | जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ||
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29
कबीर दोहा - जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
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30
कबीर दोहा - ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग | प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ||
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31
कबीर दोहा - तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय | सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ||
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32
कबीर दोहा - दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार, तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार
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33
कबीर दोहा - नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए | मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ||
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34
कबीर दोहा - पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय | ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||
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35
कबीर दोहा - पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात | देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ||
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36
कबीर दोहा - बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर | पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ||
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37
कबीर दोहा - मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार | फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ||
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38
कबीर दोहा - राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय | जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ||
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39
कबीर दोहा - ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार | हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ||
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40
कबीर दोहा - यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान | शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||
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41
कबीर दोहा - माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए | हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय ||
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42
कबीर दोहा - कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई
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43
कबीर दोहा - संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत | चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत ||
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44
कबीर दोहा - पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत | अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ||
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45
कबीर दोहा - कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह। देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।।
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46
कबीर दोहा - चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ॥
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47
कबीर दोहा - निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें | बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ||
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48
कबीर दोहा - बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय | जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ||
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49
कबीर दोहा - जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश | जो है जा को भावना सो ताहि के पास ||
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50
कबीर दोहा - प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए | राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ||
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51
कबीर दोहा - जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही | ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ||
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52
कबीर दोहा - जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही | सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ||
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53
कबीर दोहा - प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय | लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ||
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54
कबीर दोहा - कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और । हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
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55
कबीर दोहा - कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी | एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ||
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56
कबीर दोहा - ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय | सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ||
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57
कबीर दोहा - ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि. मूरख लोग न जानिए , बाहर ढूँढत जाहिं
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58
कबीर दोहा - कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये, ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये
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59
कबीर दोहा - जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ
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60
कबीर दोहा - दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत
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61
कबीर दोहा - अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप
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62
कबीर दोहा - कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन, कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन
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63
कबीर दोहा - बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि
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64
कबीर दोहा - हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना, आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना
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65
कबीर दोहा - कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर
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66
कबीर दोहा - जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई, जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई
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